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शेर
आब-दीदा हूँ मैं ख़ुद ज़ख़्म-ए-जिगर से अपने
तेरी आँखों में छुपा दर्द कहाँ से देखूँ
मोहम्मद असदुल्लाह
शेर
क्या ख़बर मुझ को ख़िज़ाँ क्या चीज़ है कैसी बहार
आँखें खोलीं आ के मैं ने ख़ाना-ए-सय्याद में
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
शेर
सालिक लखनवी
शेर
कब ये दिल ओ दिमाग़ है मिन्नत-ए-शम्अ खींचिए
ख़ाना-ए-दिल-जलों के बीच दाग़-ए-जिगर चराग़ है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
लग़्ज़िश-ए-साक़ी-ए-मय-ख़ाना ख़ुदा ख़ैर करे
फिर न टूटे कोई पैमाना ख़ुदा ख़ैर करे
अब्दुल्लतीफ़ शौक़
शेर
छोड़ कर कूचा-ए-मय-ख़ाना तरफ़ मस्जिद के
मैं तो दीवाना नहीं हूँ जो चलूँ होश की राह
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
शेर
मिरे दिल से कभी ग़ाफ़िल न हों ख़ुद्दाम-ए-मय-ख़ाना
ये रिंद-ए-ला-उबाली बे-पिए भी तो बहकता है
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
अगर तेरी तरह तब्लीग़ करता पीर-ए-मय-ख़ाना
तो दुनिया-भर में वाइज़ मय-कशी ही मय-कशी होती