आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "मोहन"
शेर के संबंधित परिणाम "मोहन"
शेर
तू ने ही रह न दिखाई तो दिखाएगा कौन
हम तिरी राह में गुमराह हुए बैठे हैं
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
है फ़हम उस का जो हर इंसान के दिल की ज़बाँ समझे
सुख़न वो है जिसे हर शख़्स अपना ही बयाँ समझे
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
मोहब्बत में नहीं है इब्तिदा या इंतिहा कोई
हम अपने इश्क़ को ही इश्क़ की मंज़िल समझते हैं
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
क़ुदरत की बरकतें हैं ख़ज़ाना बसंत का
क्या ख़ूब क्या अजीब ज़माना बसंत का
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
आँखों आँखों में पिला दी मिरे साक़ी ने मुझे
ख़ौफ़-ए-ज़िल्लत है न अंदेशा-ए-रुस्वाई है
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
हर शय में हर बशर में नज़र आ रहा है तू
सज्दे में अपने सर को झुकाऊँ कहाँ कहाँ