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शेर
ज़ुल्फ़-ए-सुम्बुल निकहत-ए-गुल मौज-ए-सब्ज़ा मौज-ए-आब
बाग़ में कोई जगह ख़ाली न देखी दाम से
जलील मानिकपूरी
शेर
बसंत आई है मौज-ए-रंग-ए-गुल है जोश-ए-सहबा है
ख़ुदा के फ़ज़्ल से ऐश-ओ-तरब की अब कमी क्या है
मह लक़ा चंदा
शेर
जिस नूर के बक्के को मह-ओ-ख़ुर ने न देखा
कम-बख़्त ये दिल लोटे है उस पर्दा-नशीं पर
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
मुग़ीसुद्दीन फ़रीदी
शेर
शबाब-ए-हुस्न है बर्क़-ओ-शरर की मंज़िल है
ये आज़माइश-ए-क़ल्ब-ओ-नज़र की मंज़िल है