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शेर
ऐ मौज-ए-बला उन को भी ज़रा दो चार थपेड़े हल्के से
कुछ लोग अभी तक साहिल से तूफ़ाँ का नज़ारा करते हैं
मुईन अहसन जज़्बी
शेर
बना लेता है मौज-ए-ख़ून-ए-दिल से इक चमन अपना
वो पाबंद-ए-क़फ़स जो फ़ितरतन आज़ाद होता है
असग़र गोंडवी
शेर
ज़ुल्फ़-ए-सुम्बुल निकहत-ए-गुल मौज-ए-सब्ज़ा मौज-ए-आब
बाग़ में कोई जगह ख़ाली न देखी दाम से
जलील मानिकपूरी
शेर
मोहब्बत थी चमन से लेकिन अब ये बे-दिमाग़ी है
कि मौज-ए-बू-ए-गुल से नाक में आता है दम मेरा
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
कोई मंज़िल आख़िरी मंज़िल नहीं होती 'फ़ुज़ैल'
ज़िंदगी भी है मिसाल-ए-मौज-ए-दरिया राह-रौ