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शेर
कुछ तो है वैसे ही रंगीं लब ओ रुख़्सार की बात
और कुछ ख़ून-ए-जिगर हम भी मिला देते हैं
आल-ए-अहमद सुरूर
शेर
नाम से तेरे जो रौशन मतला-ए-दीवाँ हुआ
हर वरक़ ख़ुर्शीद का मानिंद-ए-नूर अफ़्शाँ हुआ
राजा जिया लाल बहादुर गुलशन
शेर
क्या इसी ने ये किया मतला-ए-अबरू मौज़ूँ
तुम जो कहते हो सुख़न-गो है बड़ी मेरी आँख
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
शेर
मअ'नी-ए-रौशन जो हों तो सौ से बेहतर एक शेर
मतला-ए-ख़ुर्शीद काफ़ी है पए-दीवान-ए-सुब्ह
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी
शेर
की दिल ने दिल-बरान-ए-जहाँ की बहुत तलाश
कुइ दिल-रुबा मिला है न दिल-ख़्वाह क्या करे
मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार
शेर
सफ़-ए-मुनाफ़िक़ाँ में फिर वो जा मिला तो क्या अजब
हुई थी सुल्ह भी ख़मोश इख़्तिलाफ़ की तरह