aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "मौसम-ए-हिज्राँ"
आँखों में जल रहे थे दिए ए'तिबार केएहसास-ए-ज़ुल्मत-ए-शब-ए-हिज्राँ नहीं रहा
आप के दुश्मन रहें वक़्फ़-ए-ख़लिश सर्फ़-ए-तपिशआप क्यूँ ग़म-ख़्वारी-ए-बीमार-ए-हिज्राँ कीजिए
होना है दर्द-ए-इश्क़ से गर लज़्ज़त-आश्नादिल को ख़राब-ए-तल्ख़ी-ए-हिज्राँ तो कीजिए
तेरे आने का इंतिज़ार रहाउम्र भर मौसम-ए-बहार रहा
मौसम-ए-बारान-ए-फ़ुर्क़त में रुलाने के लिएमोर दिन को बोल उठता है पपीहा रात को
शाम-ए-हिज्राँ भी इक क़यामत थीआप आए तो मुझ को याद आया
हसरत-ए-मौसम-ए-गुलाब हूँ मैंसच न हो पाएगा वो ख़्वाब हूँ मैं
मौसम-ए-गुल हमें जब याद आयाजितना ग़म भूले थे सब याद आया
नहीं शिकायत-ए-हिज्राँ कि इस वसीले सेहम उन से रिश्ता-ए-दिल उस्तुवार करते रहे
अभी तो मौसम-ए-ख़िज़ाँ है येखिलेंगे फूल भी बहार के साथ
मौसम-ए-गुल अभी नहीं आयाचल दिए घर में हम लगा कर आग
ऐ शब-ए-हिज्राँ ज़ियादा पाँव फैलाती है क्यूँभर गया जितना हमारी उम्र का पैमाना था
ज़िंदगी फैली हुई थी शाम-ए-हिज्राँ की तरहकिस को इतना हौसला था कौन जी कर देखता
घर रहिए कि बाहर है इक रक़्स बलाओं काइस मौसम-ए-वहशत में नादान निकलते हैं
नहीं है रहना उसे भी बहार में 'ताहिर'मुझे भी मौसम-ए-शादाब से निकलना है
मौसम-ए-याद यूँ उजलत में न वारे जाएँहम वो लम्हे हैं जो फ़ुर्सत से गुज़ारे जाएँ
मौसम-ए-ज़र्द में एक दिल को बचाऊँ कैसेऐसी रुत में तो घने पेड़ भी झड़ जाते हैं
सताती है तुम्हारी याद जब मुझ को शब-ए-हिज्राँमुझे ख़ुद अपनी हस्ती अजनबी मालूम होती है
इस बला को तो ख़ुदा जल्द करे शहर-बदरकाले पानी को रवाना शब-ए-हिज्राँ हो जाए
क़फ़स से दूर सही मौसम-ए-बहार तो हैअसीरो आओ ज़रा ज़िक्र-ए-आशियाँ हो जाए
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