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शेर
मिरी 'आशिक़ी सही बे-असर तिरी दिलबरी ने भी क्या किया
वही मैं रहा वही बे-दिली वही रंग-ए-लैल-ओ-नहार है
ए. डी. अज़हर
शेर
हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि 'ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयाँ और
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
ग़ज़ल इस बहर में क्या तुम ने लिखी है ये 'नसीर'
जिस से है रंग-ए-गुल-ए-मअनी-ए-मुश्किल टपका
शाह नसीर
शेर
बाग़बाँ काटियो मत मौसम-ए-गुल में उस को
रग-ए-जाँ को मिरी निस्बत है रग-ए-ताक के साथ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
क़फ़स से छुट के वतन का सुराग़ भी न मिला
वो रंग-ए-लाला-ओ-गुल था कि बाग़ भी न मिला
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
क़फ़स से छुट के वतन का सुराग़ भी न मिला
वो रंग-ए-ला'ला-ओ-गुल था कि बाग़ भी न मिला