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शेर
देख ज़िंदाँ से परे रंग-ए-चमन जोश-ए-बहार
रक़्स करना है तो फिर पाँव की ज़ंजीर न देख
मजरूह सुल्तानपुरी
शेर
ये किस ने फ़ोन पे दी साल-ए-नौ की तहनियत मुझ को
तमन्ना रक़्स करती है तख़य्युल गुनगुनाता है
अली सरदार जाफ़री
शेर
मिरी शाएरी में न रक़्स-ए-जाम न मय की रंग-फ़िशानियाँ
वही दुख-भरों की हिकायतें वही दिल-जलों की कहानियाँ
कलीम आजिज़
शेर
अभी से सुब्ह-ए-गुलशन रक़्स-फ़रमा है निगाहों में
अभी पूरी नक़ाब उल्टी नहीं है शाम-ए-सहरा ने
परवेज़ शाहिदी
शेर
हर चंद बगूला मुज़्तर है इक जोश तो उस के अंदर है
इक वज्द तो है इक रक़्स तो है बेचैन सही बर्बाद सही
अकबर इलाहाबादी
शेर
हम-नफ़स ख़्वाब-ए-जुनूँ की कोई ता'बीर न देख
रक़्स करना है तो फिर पाँव की ज़ंजीर न देख