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शेर
ख़िज़ाँ का ज़हर सारे शहर की रग रग में उतरा है
गली-कूचों में अब तो ज़र्द चेहरे देखने होंगे
इम्दाद हमदानी
शेर
छुपाए हूँ मैं ग़म-ए-इश्क़ अपनी रग रग में
न चाक है मिरा दामन न आस्तीं नम है