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शेर
अकेला हो रह-ए-दुनिया में गिर चाहे बहुत जीना
हुई है फ़ैज़-ए-तन्हाई से उम्र-ए-ख़िज़्र तूलानी
मोहम्मद रफ़ी सौदा
शेर
क्या दीद के क़ाबिल तिरे कूचे की ज़मीं है
हर गाम है नक़्श-ए-क़दम-ए-रह-गुज़री आँख
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
शेर
ये तो अपना अपना है हौसला ये तो अपनी अपनी उड़ान है
कोई उड़ के रह गया बाम तक कोई कहकशाँ से गुज़र गया
तौफ़ीक-उल-हसन
शेर
मिरी 'आशिक़ी सही बे-असर तिरी दिलबरी ने भी क्या किया
वही मैं रहा वही बे-दिली वही रंग-ए-लैल-ओ-नहार है
ए. डी. अज़हर
शेर
वफ़ूर-ए-बे-ख़ुदी में रख दिया सर उन के क़दमों पर
वो कहते ही रहे 'वासिफ़' ये महफ़िल है ये महफ़िल है
वासिफ़ देहलवी
शेर
किया ख़ाक आतिश-ए-इश्क़ ने दिल-ए-बे-नवा-ए-'सिराज' कूँ
न ख़तर रहा न हज़र रहा मगर एक बे-ख़तरी रही
सिराज औरंगाबादी
शेर
हाथ मलते हुए आज आते हैं सब रह-गुज़रे
जा-ए-हैरत है कि मैं क्यूँ सर-ए-बाज़ार न था