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शेर
वो हिन्दी नौजवाँ यानी अलम-बरदार-ए-आज़ादी
वतन की पासबाँ वो तेग़-ए-जौहर-दार-ए-आज़ादी
मख़दूम मुहिउद्दीन
शेर
कभी हो सका तो बताऊँगा तुझे राज़-ए-आलम-ए-ख़ैर-ओ-शर
कि मैं रह चुका हूँ शुरूअ' से गहे ऐज़्द-ओ-गहे अहरमन
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
होता है राज़-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत इन्हीं से फ़ाश
आँखें ज़बाँ नहीं हैं मगर बे-ज़बाँ नहीं
असग़र गोंडवी
शेर
सुख़न राज़-ए-नशात-ओ-ग़म का पर्दा हो ही जाता है
ग़ज़ल कह लें तो जी का बोझ हल्का हो ही जाता है
शाज़ तमकनत
शेर
राज़-ए-ग़म-ए-उल्फ़त को ये दुनिया न समझ ले
आँसू मिरे दामन में तुम्हारे भी मिले हैं
अली ज़हीर रिज़वी लखनवी
शेर
गरचे है तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल पर्दा-दार-ए-राज़-ए-इश्क़
पर हम ऐसे खोए जाते हैं कि वो पा जाए है
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
आले रज़ा रज़ा
शेर
ख़ुदा ऐ काश 'नाज़िश' जीते-जी वो वक़्त भी लाए
कि जब हिन्दोस्तान कहलाएगा हिन्दोस्तान-ए-आज़ादी
नाज़िश प्रतापगढ़ी
शेर
क्या करिश्मा है मिरे जज़्बा-ए-आज़ादी का
थी जो दीवार कभी अब है वो दर की सूरत