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शेर
ज़िंदगी नाम है इक जोहद-ए-मुसलसल का 'फ़ना'
राह-रौ और भी थक जाता है आराम के बा'द
फ़ना निज़ामी कानपुरी
शेर
मंज़िलें सम्तें बदलती जा रही हैं रोज़ ओ शब
इस भरी दुनिया में है इंसान तन्हा राह-रौ
फ़ुज़ैल जाफ़री
शेर
कोई मंज़िल आख़िरी मंज़िल नहीं होती 'फ़ुज़ैल'
ज़िंदगी भी है मिसाल-ए-मौज-ए-दरिया राह-रौ
फ़ुज़ैल जाफ़री
शेर
मिरे अंदर ढंडोरा पीटता है कोई रह रह के
जो अपनी ख़ैरियत चाहे वो बस्ती से निकल जाए
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
शेर
महव-ए-दीदार हुए जाते हैं रह-रौ सारे
इक तमाशा हुआ गोया रुख़-ए-दिलबर न हुआ
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
ये रास रंग ये मेल मिलन इक हाथ में चाँद इक में सूरज
इक रात का मौज मज़ा सारा इक दिन का सैर-सपाटा है