aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "रियाज़त-ए-नीम-शब"
जो मिरी रियाज़त-ए-नीम-शब को 'सलीम' सुब्ह न मिल सकीतो फिर इस के मअ'नी तो ये हुए कि यहाँ ख़ुदा कोई और है
तेरा ही रक़्स सिलसिला-ए-अक्स-ए-ख़्वाब हैइस अश्क-ए-नीम-शब से शब-ए-माहताब तक
नींद क्यूँ टूट गई आख़िर-ए-शबकौन मेरे लिए तड़पा होगा
ये शब-ए-ग़म ये मेरी तन्हाईइस रिफ़ाक़त का कौन सानी है
उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिएकि नींद शर्त नहीं ख़्वाब देखने के लिए
उफ़ शब-ए-हिज्र की सियाही आजकुफ़्र की तीरगी से बढ़ कर है
एक सुरूद-ए-रौशनी नीमा-ए-शब का ख़्वाब थाएक ख़मोश तीरगी सानेहा-आश्ना भी थी
दावा बहुत बड़ा है रियाज़ी में आप कोतूल-ए-शब-ए-फ़िराक़ को तो नाप दीजिए
थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शबवो आए तो भी नींद न आई तमाम शब
पर्दा-ए-शब से निकलने का नहीं लेता नामआज सूरज ही सवेरा नहीं होने देता
ऐ शब-ए-ख़्वाब ये हंगाम-ए-तहय्युर क्या हैख़ुद को गर नींद से बेदार किया है मैं ने
तिरे बग़ैर तेरे इंतिज़ार से थक करशब-ए-फ़िराक़ के मारों को नींद आई है
तुझ ऐसी नर्म गर्म कई लड़कियों के साथमैं ने शब-ए-फ़िराक़ डुबो दी शराब में
आग़ोश में महकोगे दिखाई नहीं दोगेतुम निकहत-ए-गुलज़ार हो हम पर्दा-ए-शब हैं
साँस रुकती है छलकते हुए पैमाने मेंकोई लेता था तिरा नाम-ए-वफ़ा आख़िर-ए-शब
कोई क्या जाने कि है रोज़-ए-क़यामत क्या चीज़दूसरा नाम है मेरी शब-ए-तन्हाई का
मैं नींद क्या तिरे बाज़ार-ए-शब में ले आयाफिर इस के बाद तो ख़्वाबों का भाव और बढ़ा
शब-ए-वसलत तो जाते जाते अंधा कर गई मुझ कोतुम अब बहरा करो साहब सुना कर नाम रुख़्सत का
शब ढली उठने लगे होटल से लोगचाय का ये दौर इस के नाम पर
क्या ही रह रह के तबीअ'त मिरी घबराती हैमौत आती है शब-ए-हिज्र न नींद आती है
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