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शेर
बड़े बड़े ग़म खड़े हुए थे रस्ता रोके राहों में
छोटी छोटी ख़ुशियों से ही हम ने दिल को शाद किया
निदा फ़ाज़ली
शेर
मग़रिब मुझे खींचे है तो रोके मुझे मशरिक़
धोबी का वो कुत्ता हूँ कि जो घाट न घर का
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
शेर
यार रोते रहे सब रूह ने परवाज़ किया
क्या मुसाफ़िर के तईं शिद्दत-ए-बाराँ रोके
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
गर रहूँ शहर में हो दूद के बाइस ख़फ़क़ाँ
जाऊँ सहरा को तो दम गर्द-ए-बयाबाँ रोके
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
माँ बाप और उस्ताद सब हैं ख़ुदा की रहमत
है रोक-टोक उन की हक़ में तुम्हारे ने'मत