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शेर
रोज़-ए-जज़ा गिला तो क्या शुक्र-ए-सितम ही बन पड़ा
हाए कि दिल के दर्द ने दर्द को दिल बना दिया
फ़ानी बदायुनी
शेर
क्यूँ मुजरिम-ए-वफ़ा से हैं ये बद-गुमानियाँ
क्यूँ डर रहे हैं पुर्सिश-ए-रोज़-ए-जज़ा से आप
खैरुद्दीन यास
शेर
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शेर
उसी को हश्र कहते हैं जहाँ दुनिया हो फ़रियादी
यही ऐ मीर-ए-दीवान-ए-जज़ा क्या तेरी महफ़िल है
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
मैं अजब ये रस्म देखी मुझे रोज़-ए-ईद-ए-क़ुर्बां
वही ज़ब्ह भी करे और वही ले सवाब उल्टा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
रोज़-ए-विसाल जिस को कहती है ख़ल्क़ वो ही
मज़हब में आशिक़ों के रोज़-ए-वफ़ात भी है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
है रोज़-ए-पंज-शम्बा तू फ़ातिहा दिला दे
घर तेरे कुश्तगाँ की रूहें न आइयाँ हों
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
ये अजीब माजरा है कि ब-रोज़-ए-ईद-ए-क़ुर्बां
वही ज़ब्ह भी करे है वही ले सवाब उल्टा
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
शेर
दर्द का रस्ता है या है साअ'त-ए-रोज़-ए-हिसाब
सैकड़ों लोगों को रोका एक भी ठहरा नहीं