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शेर
रुख़ से लहरा कर ज़नख़दाँ के हैं माइल मु-ए-ज़ुल्फ़
दौड़ता है चाह की जानिब ही प्यासा धूप में
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
बोसा देते नहीं और दिल पे है हर लहज़ा निगाह
जी में कहते हैं कि मुफ़्त आए तो माल अच्छा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
ये लम्हा लम्हा ज़िंदा रहने की ख़्वाहिश का हासिल है
कि लहज़ा लहज़ा अपने आप ही में मर रहा हूँ मैं