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शेर
हो गया लाग़र जो उस लैला-अदा के इश्क़ में
मिस्ल-ए-मजनूँ हाल मेरा भी फ़साना हो गया
भारतेंदु हरिश्चंद्र
शेर
हुस्न ओ इश्क़ की लाग में अक्सर छेड़ उधर से होती है
शम्अ की शोअ'ला जब लहराई उड़ के चला परवाना भी
आरज़ू लखनवी
शेर
मैं ये कहता हूँ कि दोनों में ज़रूरी लाग है
वो ये कहते हैं ज़मीं को आसमाँ से क्या ग़रज़
क़द्र ओरैज़ी
शेर
सुनता हूँ कि ख़िर्मन से है बिजली को बहुत लाग
हाँ एक निगाह-ए-ग़लत-अंदाज़ इधर भी
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
शेर
उस लब-ए-बाम से ऐ सरसर-ए-फुर्क़त तू बता
मिस्ल तिनके के मिरा ये तन-ए-लाग़र फेंका
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शेर
लाग़र ऐसा वहशत-ए-इश्क़-ए-लब-ए-शीरीं में हूँ
च्यूंटियाँ ले जाती हैं दाना मिरी ज़ंजीर का
असद अली ख़ान क़लक़
शेर
हर्फ़ सारे बोल उट्ठें जब भी मैं लिखने लगूँ
अब कोई जज़्बा मिरा महव-ए-दुआ लगता नहीं
बहारुन्निसा बहार
शेर
बनाई एक ही दोनों की सूरत काहिश-ए-ग़म ने
गुमाँ होता है तार-ए-पैरहन पर जिस्म-ए-लाग़र का