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शेर
यार था गुलज़ार था बाद-ए-सबा थी मैं न था
लाएक़-ए-पाबोस-ए-जानाँ क्या हिना थी मैं न था
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
जब नशे में हम ने कुछ मीठे की ख़्वाहिश उस से की
तुर्श हो बोला कि क्यूँ बे तू भी इस लाएक़ हुआ
वलीउल्लाह मुहिब
शेर
उस के होने से हुई है अपने होने की ख़बर
कोई दुश्मन से ज़ियादा लाएक़-ए-इज़्ज़त नहीं
ग़ुलाम हुसैन साजिद
शेर
जाँ-कनी पेशा हो जिस का वो लहक है तेरा
तुझ पे शीरीं है न 'ख़ुसरव' का न फ़रहाद का हक़
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शेर
दिल का कँवल बुझे हुए मुद्दत गुज़र गई
अब ये चराग़ लाएक़-ए-महफ़िल नहीं रहा
सय्यद अहमद हुसैन शफ़ीक़ लखनवी
शेर
काम 'अंजुम' का जो तमाम किया ये आप ने वाक़ई ख़ूब किया
कम-बख़्त इसी के लाएक़ था अब आप अबस पछताते हैं
अंजुम मानपुरी
शेर
बज़्म-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ में 'अकबर' की अफ़्सुर्दा-दिली
दाद के लाएक़ नहीं बे-दाद के क़ाबिल नहीं