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शेर
शह-ए-बे-ख़ुदी ने अता किया मुझे अब लिबास-ए-बरहनगी
न ख़िरद की बख़िया-गरी रही न जुनूँ की पर्दा-दरी रही
सिराज औरंगाबादी
शेर
जामा उर्यानी का क़ामत पर मिरी आया है रास्त
अब मुझे नाम-ए-लिबास-ए-आरियत से नंग है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
कि हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में
अल्लामा इक़बाल
शेर
ग़ज़ब है रूह से इस जामा-ए-तन का जुदा होना
लिबास-ए-तंग है उतरेगा आख़िर धज्जियाँ हो कर