aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "शामत"
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दोन जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो हैलम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
ऐ जुनूँ फिर मिरे सर पर वही शामत आईफिर फँसा ज़ुल्फ़ों में दिल फिर वही आफ़त आई
ये कह दो बस मौत से हो रुख़्सत क्यूँ नाहक़ आई है उस की शामतकि दर तलक वो मसीह-ख़सलत मिरी अयादत को आ चुके हैं
शामत है क्या कि शैख़ से कोई मिले कि वाँरोज़ा वबाल-ए-जाँ है सदा या नमाज़ है
दिल की शामत आई जा कर फँस गयायार के गेसू-ए-पुर-ख़म क्या करें
शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदासदिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं
सुब्ह होती है शाम होती हैउम्र यूँही तमाम होती है
तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगेमैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे
शाम से आँख में नमी सी हैआज फिर आप की कमी सी है
शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैंइतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं
वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम भीइंतिज़ार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे
यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती हैआज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया
वो चाँद कह के गया था कि आज निकलेगातो इंतिज़ार में बैठा हुआ हूँ शाम से मैं
अब उदास फिरते हो सर्दियों की शामों मेंइस तरह तो होता है इस तरह के कामों में
तुम परिंदों से ज़ियादा तो नहीं हो आज़ादशाम होने को है अब घर की तरफ़ लौट चलो
वो कौन था जो दिन के उजाले में खो गयाये चाँद किस को ढूँडने निकला है शाम से
बस एक शाम का हर शाम इंतिज़ार रहामगर वो शाम किसी शाम भी नहीं आई
शाम से कुछ बुझा सा रहता हूँदिल हुआ है चराग़ मुफ़्लिस का
कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाएतुम्हारे नाम की इक ख़ूब-सूरत शाम हो जाए
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