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शेर
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
शेर
दोस्तो क्या क्या दिवाली में नशात-ओ-ऐश है
सब मुहय्या है जो इस हंगाम के शायाँ है शय
नज़ीर अकबराबादी
शेर
अब इक बोसे पे इतनी बहस ज़ेबा है न शायाँ है
निगाहें नीची कर लो ख़ैर अच्छा ले लिया होगा
सय्यद काज़िम जावेद
शेर
साहिर लुधियानवी
शेर
जिन से मिल कर ज़िंदगी से इश्क़ हो जाए वो लोग
आप ने शायद न देखे हों मगर ऐसे भी हैं