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शेर
कुछ कहने का वक़्त नहीं ये कुछ न कहो ख़ामोश रहो
ऐ लोगो ख़ामोश रहो हाँ ऐ लोगो ख़ामोश रहो
इब्न-ए-इंशा
शेर
गर्दिश-ए-अय्याम से चलती है नब्ज़-ए-काएनात
वक़्त का पहिया रुका तो ज़िंदगी रुक जाएगी
लतीफ़ शाह शाहिद
शेर
शाह नसीर
शेर
डर ख़ुदा सीं ख़ूब नईं ये वक़्त-ए-क़त्ल-ए-आम कूँ
सुब्ह कूँ खोला न कर इस ज़ुल्फ़-ए-ख़ून-आशाम कूँ
आबरू शाह मुबारक
शेर
क्या जाने शाख़-ए-वक़्त से किस वक़्त गिर पड़ूँ
मानिंद-ए-बर्ग-ए-ज़र्द अभी डोलता हूँ मैं
इमरान-उल-हक़ चौहान
शेर
गदा-ए-शाह-ए-नजफ़ हूँ सो मेरे कासे से
जहाँ को चर्ख़-ए-सुख़न के सभी पते मिलेंगे
मुज़म्मिल अब्बास शजर
शेर
'जामी' मैं तसव्वुर में वहाँ पहुँचा हुआ हूँ
हाँ मुझ को मिरे शाह-ए-नजफ़ देख रहे हैं
मोहम्मद मुस्तहसन जामी
शेर
निगाहें जोड़ और आँखें चुरा टुक चल के फिर देखा
मिरे चेहरे उपर की शाह-ए-ख़ूबाँ ने नज़र सानी
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
जब नबी-साहिब में कोह-ओ-दश्त से आई बसंत
कर के मुजरा शाह-ए-मर्दां की तरफ़ धाई बसंत