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शेर
गले से लगते ही जितने गिले थे भूल गए
वगर्ना याद थीं हम को शिकायतें क्या क्या
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शेर
वही हिकायत-ए-दिल थी वही शिकायत-ए-दिल
थी एक बात जहाँ से भी इब्तिदा करते