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शेर
ये मंज़र ये रूप अनोखे सब शहकार हमारे हैं
हम ने अपने ख़ून-ए-जिगर से क्या क्या नक़्श उभारे हैं
जमील मलिक
शेर
हर शख़्स को फ़रेब-ए-नज़र ने किया शिकार
हर शख़्स गुम है गुम्बद-ए-जाँ के हिसार में
फ़र्रुख़ ज़ोहरा गिलानी
शेर
मुझ से उन आँखों को वहशत है मगर मुझ को है इश्क़
खेला करता हूँ शिकार आहु-ए-सहराई का