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शेर
दर्द-ए-दिल के वास्ते पैदा किया इंसान को
वर्ना ताअत के लिए कुछ कम न थे कर्र-ओ-बयाँ
ख़्वाजा मीर दर्द
शेर
इब्न-ए-इंशा
शेर
सैर-ए-बहार-ए-बाग़ से हम को मुआ'फ़ कीजिए
उस के ख़याल-ए-ज़ुल्फ़ से 'दर्द' किसे फ़राग़ है
ख़्वाजा मीर दर्द
शेर
यार रोते रहे सब रूह ने परवाज़ किया
क्या मुसाफ़िर के तईं शिद्दत-ए-बाराँ रोके
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
किश्वर-ए-दिल अब मकान-ए-दर्द-ओ-दाग़-ओ-यास है
इश्क़ के हाकिम ने बिठलाए हैं याँ थाने कई
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
हादसात-ए-दहर में वाबस्ता-ए-अर्बाब-ए-दर्द
ली जहाँ करवट किसी ने इंक़लाब आ ही गया
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
हम को भी क्या क्या मज़े की दास्तानें याद थीं
लेकिन अब तमहीद-ए-ज़िक्र-ए-दर्द-ओ-मातम हो गईं
मिर्ज़ा हादी रुस्वा
शेर
वक़्त-ए-नज़्ज़ारा न रो कहते थे ऐ चश्म तुझे
शिद्दत-ए-गिर्या से ले ख़ाक न सूझा, देखा