aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "समझ"
ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजेइक आग का दरिया है और डूब के जाना है
बस जान गया मैं तिरी पहचान यही हैतू दिल में तो आता है समझ में नहीं आता
मैं जिन दिनों तिरे बारे में सोचता हूँ बहुतउन्हीं दिनों तो ये दुनिया समझ में आती है
मैं जिसे प्यार का अंदाज़ समझ बैठा हूँवो तबस्सुम वो तकल्लुम तिरी आदत ही न हो
तर्क-ए-मय ही समझ इसे नासेहइतनी पी है कि पी नहीं जाती
जो मिल गया उसी को मुक़द्दर समझ लियाजो खो गया मैं उस को भुलाता चला गया
तुम इसे शिकवा समझ कर किस लिए शरमा गएमुद्दतों के बा'द देखा था तो आँसू आ गए
ये समझ के माना है सच तुम्हारी बातों कोइतने ख़ूब-सूरत लब झूट कैसे बोलेंगे
मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया कोसमझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे
मिरे अज़ीज़ ही मुझ को समझ न पाए कभीमैं अपना हाल किसी अजनबी से क्या कहता
क़रीब आओ तो शायद समझ में आ जाएकि फ़ासले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं
क्या जाने किस अदा से लिया तू ने मेरा नामदुनिया समझ रही है कि सच-मुच तिरा हूँ मैं
जिसे मंज़िल समझ कर रुक गए हमवहीं से अपना आग़ाज़-ए-सफ़र था
मोती समझ के शान-ए-करीमी ने चुन लिएक़तरे जो थे मिरे अरक़-ए-इंफ़िआ'ल के
बदन के कर्ब को वो भी समझ न पाएगामैं दिल में रोऊँगी आँखों में मुस्कुराऊँगी
अपना कंगन समझ रहे हो क्याऔर कितना घुमाओगे मुझ को
कैसा जादू है समझ आता नहींनींद मेरी ख़्वाब सारे आप के
रास्ता दे कि मोहब्बत में बदन शामिल हैमैं फ़क़त रूह नहीं हूँ मुझे हल्का न समझ
ज़र्रा समझ के यूँ न मिला मुझ को ख़ाक मेंऐ आसमान मैं भी कभी आफ़्ताब था
किताब-ए-इश्क़ में हर आह एक आयत हैपर आँसुओं को हुरूफ़-ए-मुक़त्तिआ'त समझ
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