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शेर
क़ुव्वत-ए-फ़िक्र भी दी ऐसे कि इक हद में रहो
यानी बे-कार समझदार बनाए गए हम
सय्यद ज़ामिन अब्बास काज़मी
शेर
कह रहा है शोर-ए-दरिया से समुंदर का सुकूत
जिस का जितना ज़र्फ़ है उतना ही वो ख़ामोश है
नातिक़ लखनवी
शेर
मोहब्बत को समझना है तो नासेह ख़ुद मोहब्बत कर
किनारे से कभी अंदाज़ा-ए-तूफ़ाँ नहीं होता