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शेर
मोहब्बत अस्ल में 'मख़मूर' वो राज़-ए-हक़ीक़त है
समझ में आ गया है फिर भी समझाया नहीं जाता
मख़मूर देहलवी
शेर
अहल-ए-नसीहत जितने हैं हाँ उन को समझा दें ये लोग
मैं तो हूँ समझा-समझाया मुझ को क्या समझाते हैं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
'माजिद' ने बैराग लिया है कोई ऐसी बात नहीं
इधर उधर की बातें कर के लोगों को समझाया कर
माजिद-अल-बाक़री
शेर
मैं तो समझूँगा जो समझाते हो मुझ को हर घड़ी
लेकिन इन दुज़्दीदा नज़रों को भी समझाया करो