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शेर
मय-कदे में इश्क़ के कुछ सरसरी जाना नहीं
कासा-ए-सर को यहाँ गर्दिश है पैमाने की तरह
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शेर
कफ़-ए-अफ़्सोस मलने से भला अब फ़ाएदा क्या है
दिल-ए-राहत-तलब क्यूँ हम न कहते थे ये दुनिया है
अफ़ज़ाल सरस्वी
शेर
मुझे जब मार ही डाला तो अब दोनों बराबर हैं
उड़ाओ ख़ाक सरसर बन के या बाद-ए-सबा बन कर
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
ख़ाक आब-ए-गिर्या से आतिश बुझे नाचार हम
जानिब-ए-कू-ए-बुताँ जूँ बाद-ए-सरसर जाएँगे
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शेर
उस लब-ए-बाम से ऐ सरसर-ए-फुर्क़त तू बता
मिस्ल तिनके के मिरा ये तन-ए-लाग़र फेंका
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शेर
ख़ुरूश-ए-सरसर-ओ-तूफ़ाँ जमूद-ए-दश्त-ओ-सराब
सुरूद-ए-फ़स्ल-ए-बहाराँ ख़िराम-ए-गर्दिश-ए-यम
इज़हार मलीहाबादी
शेर
क्या किया उस का किसू ने बाग़ से जाती रही
सर दरख़्तों के हज़ारों बाद-ए-सरसर तोड़ कर