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शेर
ये रोज़ ओ शब ये सुब्ह ओ शाम ये बस्ती ये वीराना
सभी बेदार हैं इंसाँ अगर बेदार हो जाए
जिगर मुरादाबादी
शेर
नासिर शहज़ाद
शेर
सुना है अर्श-ए-इलाही इसी को कहते हैं
तवाफ़-ए-काबा-ए-दिल हम ने सुब्ह-ओ-शाम किया
पीर शेर मोहम्मद आजिज़
शेर
रूह-ओ-बदन में जारी है इक मा'रका-ए-ख़ूँ सदियों से
एक हवाला मिट्टी का है एक हवाला पानी का
मुईद रशीदी
शेर
रोज़-ए-अज़ल से आप की मेरी कैसी रस्म-ओ-राह निभी
अव्वल अव्वल हम हुए शैदा आख़िर शैदा आप हुए
इज्तिबा रिज़वी
शेर
'बशीर' अब गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर की याद बाक़ी है
कहाँ तक साथ दे सकते ज़मीन-ओ-आसमाँ अपना