aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "सवाद-ए-रौमत-उल-कुबरा"
मैं ने सवाल-ए-वस्ल जो उन से किया कभीबोले नसीब में है तो हो जाएगा कभी
सवाल-ए-वस्ल पर कुछ सोच कर उस ने कहा मुझ सेअभी वादा तो कर सकते नहीं हैं हम मगर देखो
सब के लिए सवाल ये कब है कि क्या न होउन को तो मुझ से ज़िद है कि मेरा कहा न हो
वो सवाल-ए-लुत्फ़ पर पत्थर न बरसाएँ तो क्यूँउन को परवा-ए-शिकस्त-ए-कासा-ए-साइल नहीं
ये और बात कि वो तिश्ना-ए-जवाब रहासवाल उस का मगर गूँजता फ़ज़ा में था
जो भीक माँगते हुए बच्चे के पास थाउस कासा-ए-सवाल ने सोने नहीं दिया
ईद का चाँद जो देखा तो तमन्ना लिपटीउन से तक़रीब-ए-मुलाक़ात का रिश्ता निकला
कहेगी हश्र के दिन उस की रहमत-ए-बे-हदकि बे-गुनाह से अच्छा गुनाह-गार रहा
कभी कभी तो ये दिल में सवाल उठता हैकि इस जुदाई में क्या उस ने पा लिया होगा
सुना रहा हूँ नकीरैन को फ़साना-ए-हिज्रसवाल उन के जुदा हैं मिरे जवाब जुदा
बोसा दहन का उस के न पाएँगे अपने लबदाग़ी है मैं ने नोक ज़बान-ए-सवाल की
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