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शेर
उस के दर पर मैं गया साँग बनाए तो कहा
चल बे चल दूर हो क्या ले के फ़क़ीरी आया
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
देखें तो क्यूँकर वो काफ़िर दर तक अपने न आवेगा
अब के होली में हम भी बूढ़े का साँग बनाते हैं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा
अल्लामा इक़बाल
शेर
अभी ज़िंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है