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शेर
ये सानेहे दिल-ए-ग़म-गीं हुआ ही करते हैं
न इश्क़ ही की ख़ता है न हुस्न ही का क़ुसूर
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
मुझ पे कितने सानहे गुज़रे पर इन आँखों को क्या
मेरा दुख ये है कि मेरा हम-सफ़र रोता न था
तहज़ीब हाफ़ी
शेर
साहिर लुधियानवी
शेर
हनीफ़ अख़गर
शेर
किया अज़ल से है साने' ने बुत-परस्त मुझे
कभू बुतों से फिरूँ मैं ये तो ख़ुदा न करे