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शेर
तिरी तारीफ़ हो ऐ साहिब-ए-औसाफ़ क्या मुमकिन
ज़बानों से दहानों से तकल्लुम से बयानों से
कल्ब-ए-हुसैन नादिर
शेर
उसी को हश्र कहते हैं जहाँ दुनिया हो फ़रियादी
यही ऐ मीर-ए-दीवान-ए-जज़ा क्या तेरी महफ़िल है
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
शेर
भूल जावे साहिब-ए-इक़बाल अपनी सर-कशी
उस को दिखलावे अगर मेरी बद-इक़बाली दिमाग़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
मोतकिफ़ हो शैख़ अपने दिल में मस्जिद से निकल
साहिब-ए-दिल की बग़ल में दिल इबादत-ख़ाना है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
याद करते हैं तुझे दैर-ओ-हरम में शब-ओ-रोज़
अहल-ए-तस्बीह जुदा साहिब-ए-ज़ुन्नार जुदा