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शेर
ऐ काश हमारी क़िस्मत में ऐसी भी कोई शाम आ जाए
इक चाँद फ़लक पर निकला हो इक चाँद सर-ए-बाम आ जाए
अनवर मिर्ज़ापुरी
शेर
मैं वो गर्दन-ज़दनी हूँ कि तमाशे को मिरे
शहर के लोग खड़े हैं ब-सर-ए-बाम तमाम
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
नक़्काश-ए-अज़ल ने तो सर-ए-काग़ज़-ए-बाद आह
क्या ख़ाक लिखा उम्र की ता'मीर का नक़्शा