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शेर
हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि 'ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयाँ और
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
अहल-ए-ज़र ने देख कर कम-ज़रफ़ी-ए-अहल-ए-क़लम
हिर्स-ए-ज़र के हर तराज़ू में सुख़न-वर रख दिए
बख़्श लाइलपूरी
शेर
आदमी क्या वो न समझे जो सुख़न की क़द्र को
नुत्क़ ने हैवाँ से मुश्त-ए-ख़ाक को इंसाँ किया
हैदर अली आतिश
शेर
हाल-ए-दिल सुन के वो आज़ुर्दा हैं शायद उन को
इस हिकायत पे शिकायत का गुमाँ गुज़रा है
अब्दुल मजीद सालिक
शेर
वो सुन रहा है मिरी बे-ज़बानियों की ज़बाँ
जो हर्फ़-ओ-सौत-ओ-सदा-ओ-ज़बाँ से पहले था