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शेर
न गुफ़्तुगू में तसल्ली न ख़ामुशी में सदा
सुलूक-ए-दोस्त का अंदाज़ ही निराला है
मुज़फ़्फ़रुन्निसा नाज़
शेर
दिल है निसार मर्दुमक-ए-चश्म-ए-दोस्त पर
बीमार को है मर्दुम-ए-बीमार से ग़रज़
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
शेर
सहता रहा जफ़ा-ए-दोस्त कहता रहा अदा-ए-दोस्त
मेरे ख़ुलूस ने मिरा जीना मुहाल कर दिया
फ़ना निज़ामी कानपुरी
शेर
कहा मैं ने कि जन्नत पर रज़ा-ए-दोस्त फ़ाइक़ है
रज़ा-ए-दोस्त बोली बे-ख़बर मैं ही तो जन्नत हूँ