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शेर
हक़ अच्छा पर उस के लिए कोई और मरे तो और अच्छा
तुम भी कोई मंसूर हो जो सूली पे चढ़ो ख़ामोश रहो
इब्न-ए-इंशा
शेर
सारी उम्र किसी की ख़ातिर सूली पे लटका रहा
शायद 'तूर' मेरे अंदर इक शख़्स था ज़िंदा बहुत
कृष्ण कुमार तूर
शेर
याद-ए-मिज़्गाँ में मिरी आँख लगी जाती है
लोग सच कहते हैं सूली पे भी नींद आती है
वज़ीर अली सबा लखनवी
शेर
उस हर्फ़-ए-बा-सफ़ा ने तो सूली चढ़ा दिया
वो एक हर्फ़-ए-हक़ जो मिरे हाफ़िज़े में था
अहमद वक़ास महरवी
शेर
इस आलम-ए-वीराँ में क्या अंजुमन-आराई
दो रोज़ की महफ़िल है इक उम्र की तन्हाई
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
शेर
देखे हैं बहुत हम ने हंगामे मोहब्बत के
आग़ाज़ भी रुस्वाई अंजाम भी रुस्वाई
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
शेर
दिलों का ज़िक्र ही क्या है मिलें मिलें न मिलें
नज़र मिलाओ नज़र से नज़र की बात करो
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
शेर
न छेड़ ऐ निकहत-ए-बाद-ए-बहारी राह लग अपनी
तुझे अटखेलियाँ सूझी हैं हम बे-ज़ार बैठे हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
शेर
ऐसा न हो ये दर्द बने दर्द-ए-ला-दवा
ऐसा न हो कि तुम भी मुदावा न कर सको
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
शेर
कल जो था वो आज नहीं जो आज है कल मिट जाएगा
रूखी-सूखी जो मिल जाए शुक्र करो तो बेहतर है
नासिर काज़मी
शेर
मैं तोहफ़ा ले के आया हूँ तमन्नाओं के फूलों का
लुटाने को बहार-ए-ज़िंदगानी ले के आया हूँ