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शेर
यही काँटे तो कुछ ख़ुद्दार हैं सेहन-ए-गुलिस्ताँ में
कि शबनम के लिए दामन तो फैलाया नहीं करते
नुशूर वाहिदी
शेर
मुसव्विर सब्ज़वारी
शेर
सर-ए-राह मिल के बिछड़ गए था बस एक पल का वो हादसा
मिरे सेहन-ए-दिल में मुक़ीम है वही एक लम्हा अज़ाब का
अंजुम इरफ़ानी
शेर
ये मिसरा लिख दिया किस शोख़ ने मेहराब-ए-मस्जिद पर
ये नादाँ गिर गए सज्दों में जब वक़्त-ए-क़याम आया
अल्लामा इक़बाल
शेर
ज़ेर-ए-मस्जिद मय-कदा मैं मय-कदे में मस्त-ए-ख़्वाब
चौंक उठा जब दी मोअज़्ज़िन ने अज़ाँ बाला-ए-सर
रियाज़ ख़ैराबादी
शेर
ये मस्जिद है ये मय-ख़ाना तअ'ज्जुब इस पर आता है
जनाब-ए-शैख़ का नक़्श-ए-क़दम यूँ भी है और यूँ भी
साइल देहलवी
शेर
क्यूँ उजाड़ा ज़ाहिदो बुत-ख़ाना-ए-आबाद को
मस्जिदें काफ़ी न होतीं क्या ख़ुदा की याद को