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शेर
हँसना रोना पाना खोना मरना जीना पानी पर
पढ़िए तो क्या क्या लिक्खा है दरिया की पेशानी पर
अखिलेश तिवारी
शेर
ग़ैरों की शिकस्ता हालत पर हँसना तो हमारा शेवा था
लेकिन हुए हम आज़ुर्दा बहुत जब अपने घर की बात चली
जुनैद हज़ीं लारी
शेर
जब मैं रोता हूँ तो अल्लाह रे हँसना उन का
क़हक़हों में मिरे नालों को उड़ा देते हैं
वज़ीर अली सबा लखनवी
शेर
सुर्ख़-रू होता है इंसाँ ठोकरें खाने के बा'द
रंग लाती है हिना पत्थर पे पिस जाने के बा'द
सय्यद ग़ुलाम मोहम्मद मस्त कलकत्तवी
शेर
ज़िंदगी क्या है अनासिर में ज़ुहूर-ए-तरतीब
मौत क्या है इन्हीं अज्ज़ा का परेशाँ होना