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शेर
हम सुख़न-फ़हम हैं 'ग़ालिब' के तरफ़-दार नहीं
देखें इस सेहरे से कह दे कोई बढ़ कर सेहरा
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
हम अपने आप से भी हम-सुख़न न होते थे
कि सारी मुश्किलें आसान में पड़ी हुई थीं
ज़ियाउल मुस्तफ़ा तुर्क
शेर
यही हम-नवा यही हम-सुख़न यही हम-निशाँ यही हम-वतन
मिरी शाइ'री ही बताएगी मिरा नाम क्या है पता है क्या?
कलीम आजिज़
शेर
हम से आबाद है ये शेर-ओ-सुख़न की महफ़िल
हम तो मर जाएँगे लफ़्ज़ों से किनारा कर के
हाशिम रज़ा जलालपुरी
शेर
देर तक ज़ब्त-ए-सुख़न कल उस में और हम में रहा
बोल उठे घबरा के जब आख़िर के तईं दम रुक गए
मिर्ज़ा अली लुत्फ़
शेर
उस के दहान-ए-तंग में जा-ए-सुख़न नहीं
हम गुफ़्तुगू करें भी तो क्या गुफ़्तुगू करें
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
शगुफ़्ता बाग़-ए-सुख़न है हमीं से ऐ 'साबिर'
जहाँ में मिस्ल-ए-नसीम-ए-बहार हम भी हैं