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शेर
हवा में जब उड़ा पर्दा तो इक बिजली सी कौंदी थी
ख़ुदा जाने तुम्हारा परतव-ए-रुख़्सार था क्या था
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
मूसा ने कोह-ए-तूर पे देखा जो कुछ वही
आता है आरिफ़ों को नज़र संग-ओ-ख़िश्त में