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शेर
हिन्दोस्ताँ में दौलत ओ हशमत जो कुछ कि थी
काफ़िर फ़िरंगियों ने ब-तदबीर खींच ली
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
हशमत-ए-दुनिया की कुछ दिल में हवस बाक़ी नहीं
इश्क़ की दौलत से हैं ऐसे ही आली-जाह हम
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
ख़ुदा ने इल्म बख़्शा है अदब अहबाब करते हैं
यही दौलत है मेरी और यही जाह-ओ-हशम मेरा
चकबस्त बृज नारायण
शेर
ज़बान-ए-हाल से ये लखनऊ की ख़ाक कहती है
मिटाया गर्दिश-ए-अफ़्लाक ने जाह-ओ-हशम मेरा