aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "हस्ब-ए-मंशा"
यहाँ किसी को भी कुछ हस्ब-ए-आरज़ू न मिलाकिसी को हम न मिले और हम को तू न मिला
ज़ीस्त और मौत का आख़िर ये फ़साना क्या हैउम्र क्यूँ हस्ब-ए-ज़रूरत नहीं दी जा सकती
दिल के औराक़ में महकी हुई कलियों की तरहएक इक याद तिरी हस्ब-ए-ज़रूरत रख ली
मिरी तलब में तकल्लुफ़ भी इंकिसार भी थावो नुक्ता-संज था सब मेरे हस्ब-ए-हाल दिया
आतिश का शेर पढ़ता हूँ अक्सर ब-हस्ब-ए-हालदिल सैद है वो बहर-ए-सुख़न के नहंग का
दिल को जानाँ से 'हसन' समझा-बुझा के लाए थेदिल हमें समझा-बुझा कर सू-ए-जानाँ ले चला
मत बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता पर मिरे हँस ऐ रक़ीब तूहोगा तिरे नसीब भी ये ख़्वाब देखना
मैं भी इक मअनी-ए-पेचीदा अजब था कि 'हसन'गुफ़्तुगू मेरी न पहुँची कभी तक़रीर तलक
'हसन-जमील' तिरा घर अगर ज़मीन पे हैतो फिर ये किस लिए गुम आसमान में तू है
मकाँ से होगा कभी ला-मकान से होगामिरा ये म'अरका दोनों जहान से होगा
वस्ल की शब का मज़ा होता है अव्वल जैसेवैसे ही होता है अहवाल बतर आख़िर-ए-शब
नाख़ुन न पहुँचा आबला-ए-दिल तलक 'हसन'हम मर गए ये हम से न आख़िर गिरह गई
वो तीरा-बख़्त हूँ कि 'हसन' मेरी बज़्म मेंदाग़-ए-सियह चराग़ है और दूद आह-ए-शम्अ'
उमँड के आँख से इक बार बह चले आँसूहँसी हँसी में जो ज़िक्र-ए-विदा-ए-यार आया
इतना रोया हूँ ग़म-ए-दोस्त ज़रा सा हँस करमुस्कुराते हुए लम्हात से जी डरता है
कम नहीं ऐ दिल-ए-बेताब मता-ए-उम्मीददस्त-ए-मय-ख़्वार में ख़ाली ही सही जाम तो है
दहशत-ज़दा ज़मीं पर वहशत भरे मकाँ येइस शहर-ए-बे-अमाँ का आख़िर कोई ख़ुदा है
कभी न जाएगा आशिक़ से देख-भाल का रोगपिलाओ लाख उसे बद-मज़ा दवा-ए-फ़िराक़
पूछिए मय-कशों से लुत्फ़-ए-शराबये मज़ा पाक-बाज़ क्या जानें
आई जब उन की याद तो आती चली गईहर नक़्श-ए-मा-सिवा को मिटाती चली गई
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