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शेर
हम ने क्या पा लिया हिन्दू या मुसलमाँ हो कर
क्यूँ न इंसाँ से मोहब्बत करें इंसाँ हो कर
नक़्श लायलपुरी
शेर
दोनों तेरी जुस्तुजू में फिरते हैं दर दर तबाह
दैर हिन्दू छोड़ कर काबा मुसलमाँ छोड़ कर
वलीउल्लाह मुहिब
शेर
जज़्बात भी हिन्दू होते हैं चाहत भी मुसलमाँ होती है
दुनिया का इशारा था लेकिन समझा न इशारा दिल ही तो है
साहिर लुधियानवी
शेर
ख़त बढ़ा काकुल बढ़े ज़ुल्फ़ें बढ़ीं गेसू बढ़े
हुस्न की सरकार में जितने बढ़े हिन्दू बढ़े
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
शेर
मैं फ़क़त इंसान हूँ हिन्दू मुसलमाँ कुछ नहीं
मेरे दिल के दर्द में तफ़रीक़-ए-ईमाँ कुछ नहीं
आनंद नारायण मुल्ला
शेर
साहिर लुधियानवी
शेर
सुनो हिन्दू मुसलमानो कि फ़ैज़-ए-इश्क़ से 'हातिम'
हुआ आज़ाद क़ैद-ए-मज़हब-ओ-मशरब से अब फ़ारिग़
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
ये किस मज़हब में और मशरब में है हिन्दू मुसलमानो
ख़ुदा को छोड़ दिल में उल्फ़त-ए-दैर-ओ-हरम रखना
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
बाज़ार से गुज़रे है वो बे-पर्दा कि उस को
हिन्दू का है ख़तरा न मुसलमान का डर है