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शेर
हुज़ूर-ए-दुख़्तर-ए-रज़ हाथ पाँव काँपते हैं
तमाम मस्तों को रअशा है रू-ब-रू-ए-शराब
मुनीर शिकोहाबादी
शेर
हम रू-ब-रू-ए-शम्अ हैं इस इंतिज़ार में
कुछ जाँ परों में आए तो उड़ कर निसार हों
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
शेर
हाजत चराग़ की है कब अंजुमन में दिल के
मानिंद-ए-शम्अ रौशन हर एक उस्तुख़्वाँ है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
सहर के साथ होगा चाक मेरा दामन-ए-हस्ती
ब-रंग-ए-शम्अ बज़्म-ए-दहर में मेहमाँ हूँ शब भर का
ताैफ़ीक़ हैदराबादी
शेर
फ़ना होने में सोज़-ए-शम'अ की मिन्नत-कशी कैसी
जले जो आग में अपनी उसे परवाना कहते हैं
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
शेर
सर काट क्यूँ जलाते हैं रौशन दिलाँ के तईं
आहन-दिली पे ख़ल्क़ की ख़ंदाँ हूँ मिस्ल-ए-शम्अ'