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शेर
जो कह रहे थे ख़ून से सींचेंगे गुल्सिताँ
वो हामियान-ए-फ़स्ल-ए-बहाराँ किधर गए
माया खन्ना राजे बरेलवी
शेर
तम्हीद थी जुनूँ की गरेबाँ हुआ जो चाक
यानी ये ख़ैर-मक़्दम-ए-फ़स्ल-ए-बहार था
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
शेर
ख़िज़ाँ रुख़्सत हुई फिर आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहारी है
गरेबाँ ख़ुद-बख़ुद होने लगा है धज्जियाँ मेरा
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
शेर
घटाएँ ऊदी ऊदी मै-कदा बर-दोश-ए-फ़स्ल-ए-गुल
न जाने लग़्ज़िश-ए-तौबा से ईमानों पे क्या गुज़री
वहशी कानपुरी
शेर
शाख़-ए-तन्हाई से फिर निकली बहार-ए-फ़स्ल-ए-ज़ात
अपनी सूरत पर हुए हम फिर बहाल उस के लिए