aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहींसामान सौ बरस का है पल की ख़बर नहीं
निगाहें इस क़दर क़ातिल कि उफ़ उफ़अदाएँ इस क़दर प्यारी कि तौबा
आगही कर्ब वफ़ा सब्र तमन्ना एहसासमेरे ही सीने में उतरे हैं ये ख़ंजर सारे
जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाहीखुलते हैं ग़ुलामों पर असरार-ए-शहंशाही
पहली नज़र भी आप की उफ़ किस बला की थीहम आज तक वो चोट हैं दिल पर लिए हुए
अपनी हस्ती ही से हो जो कुछ होआगही गर नहीं ग़फ़लत ही सही
उफ़ वो तूफ़ान-ए-शबाब आह वो सीना तेराजिसे हर साँस में दब दब के उभरता देखा
अपनी उर्दू तो मोहब्बत की ज़बाँ थी प्यारेउफ़ सियासत ने उसे जोड़ दिया मज़हब से
तिरा वस्ल है मुझे बे-ख़ुदी तिरा हिज्र है मुझे आगहीतिरा वस्ल मुझ को फ़िराक़ है तिरा हिज्र मुझ को विसाल है
'सौदा' जो बे-ख़बर है वही याँ करे है ऐशमुश्किल बहुत है उन को जो रखते हैं आगही
उम्र जो बे-ख़ुदी में गुज़री हैबस वही आगही में गुज़री है
हूँ इस कूचे के हर ज़र्रे से आगाहइधर से मुद्दतों आया गया हूँ
आगही से मिली है तन्हाईआ मिरी जान मुझ को धोका दे
आगही दाम-ए-शुनीदन जिस क़दर चाहे बिछाएमुद्दआ अन्क़ा है अपने आलम-ए-तक़रीर का
अगर शुऊर न हो तो बहिश्त है दुनियाबड़े अज़ाब में गुज़री है आगही के साथ
उस की बेटी ने उठा रक्खी है दुनिया सर परख़ैरियत गुज़री कि अँगूर के बेटा न हुआ
याद आए हैं उफ़ गुनह क्या क्याहाथ उठाए हैं जब दुआ के लिए
एक सरमस्ती ओ हैरत है सरापा तारीकएक सरमस्ती ओ हैरत है तमाम आगाही
ख़्वाब में आँखें जो तलवों से मलींबोले उफ़ उफ़ पाँव मेरा छिल गया
ख़ुदा का मतलब है ख़ुद में आ तू ख़ुद-आगही है ख़ुदा-शनासीख़ुदा को ख़ुद से जुदा समझ कर भटक रहा है इधर उधर क्यूँ
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