aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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तुम्हें हमेशा ज़रूरत पकड़ के लाती हैकभी तो आओ मिरे घर मिरे हवाले से
यही जम्हूरियत का नक़्स है जो तख्त-ए-शाही परकभी मक्कार बैठे हैं कभी ग़द्दार बैठे हैं
हवस शामिल है थोड़ी सी दुआ मेंअभी इस लौ में हल्का सा धुआँ है
रेत बन कर मिरी मुट्ठी से फिसल जाती हैअब मोहब्बत भी सँभाली नहीं जाती मुझ से
शाम उतरी है फिर अहाते मेंजिस्म पर रौशनी के घाव लिए
बनाया ऐ 'ज़फ़र' ख़ालिक़ ने कब इंसान से बेहतरमलक को देव को जिन को परी को हूर ओ ग़िल्माँ को
कुछ नौ-जवान शहर से आए हैं लौट करअब दाव पर लगी हुई इज़्ज़त है गाँव की
दिल एक सदियों पुराना उदास मंदिर हैउमीद तरसा हुआ प्यार देव-दासी का
वही आँसू वही माज़ी के क़िस्सेजिसे देखो कटे को काटता है
ऐ ज़िंदगी तू मिरे हौसले की दाद तो देमैं उठ के रोज़ नया दिन गले लगाता हूँ
मुस्कुराने का फ़न तो बअ'द का हैपहले साअ'त का इंतिख़ाब करो
नींद आती ही नहीं थी आगही के दर्द सेमौत ने आग़ोश में ले कर सुलाया है मुझे
मैं ख़ुद को भी नहीं इतना मयस्सरवो सौ फ़ीसद तवज्जोह चाहता है
समुंदर है कोई आँखों में शायदकिनारों पर चमकते हैं गुहर से
तअ'ल्लुक़ तर्क तो कर लें सभी सेभले लगते हैं कुछ नुक़सान लेकिन
देव परी के क़िस्से सुन करभूके बच्चे सो लेते हैं
सम्त दुनिया के हम गए ही नहींउस इलाक़े से दुश्मनी सी रही
मैं सारे फ़ासले तय कर चुका हूँख़ुदी जो दरमियाँ थी दरमियाँ है
मिले अब के तो रोए टूट कर हमगुनाह अपनी सज़ा के रू-ब-रू था
एक नश्शा है ख़ुद-नुमाई भीजो ये उतरे तो फिर तुझे देखूँ
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