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शेर
रस घोलते शीरीं लफ़्ज़ों की तासीर से ख़ुशबू आती है
अंदाज़-ए-बयाँ से लहजे से तक़रीर से ख़ुशबू आती है
मुईद रशीदी
शेर
तल्ख़ियाँ ख़ून-ए-जिगर की शा'इरी में घोल कर
चंद मिसरे' लाएँ हैं हम भी सुनाने के लिए
अरमान ख़ान अरमान
शेर
बाम-ए-फ़लक पे गर वो उड़ाता नहीं पतंग
ख़ुर्शीद ओ माह डोर के फिर किस की गोले हैं